कौन कहता है, औरत अब सती
नहीं होती
पति की चिता पर न होती होगी,
विवाह की बलिवेदी पर होती
है,
प्रतिदिन
न जाने क्या देता अधिक
पीड़ा
जल जाना किसी चिता में
या मरना यूँ तिल-तिल,
व्यक्तित्व का होम
हो जाना
मनुष्य हैं इच्छाधारी नाग,
नागिनें
बुनते हैं भ्रम के
ताने-बाने
मोहक रूप में आते हैं लुभाने
फिर रूप बदल डस जाने
आसान है आजीवन बन्दी
बनाना
बस तब तक जकड़े रहो
जबतक जकड़न नशा न बन जाय
जकड़न के बाहर की
दुनिया
डराने न लग जाय
जकड़न से आज़ाद जीवन
थकाने न लग जाय
अच्छा गाती थी,
पकड़ लाया
पिंजड़े में रख
लिया
फड़फड़ाती रहती
थी, उफ़्फ़
मेरी मैना थी,
कहीं और क्यों जाने देता?
फिर पुरानी हो गई
उसके गाने उबाने
लगे
इसके-उसके गाने
थे ही इतने नए
दिल लुभाते गीत,
मदमाते गीत
पिंजड़ा घेर के
बैठी थी वह
समझती नहीं,
कितने उबाऊ थे उसके गीत
फड़फड़ाती थी अब
भी
पर उड़ा देता, तो
लोग क्या कहते?
अब गाती है तो
चीखती सी लगती है
कैसी थकी सी,
मनहूस सी दिखती है
खोल तो दिया
पिंजड़ा
फड़फड़ाती क्यों
नहीं? जाती क्यों नहीं?
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