Saturday, March 26, 2016

सती


कौन कहता है, औरत अब सती नहीं होती
पति की चिता पर न होती होगी,
विवाह की बलिवेदी पर होती है,
प्रतिदिन
 
न जाने क्या देता अधिक पीड़ा
जल जाना किसी चिता में
या मरना यूँ तिल-तिल,

व्यक्तित्व का होम हो जाना

मनुष्य हैं इच्छाधारी नाग, नागिनें
बुनते हैं भ्रम के ताने-बाने
मोहक रूप में आते हैं लुभाने
फिर रूप बदल डस जाने
आसान है आजीवन बन्दी बनाना
बस तब तक जकड़े रहो
जबतक जकड़न नशा न बन जाय
जकड़न के बाहर की दुनिया
डराने न लग जाय
जकड़न से आज़ाद जीवन
थकाने न लग जाय
 
अच्छा गाती थी, पकड़ लाया
पिंजड़े में रख लिया
फड़फड़ाती रहती थी, उफ़्फ़
मेरी मैना थी, कहीं और क्यों जाने देता?
 
फिर पुरानी हो गई
उसके गाने उबाने लगे
इसके-उसके गाने थे ही इतने नए
दिल लुभाते गीत, मदमाते गीत
 
पिंजड़ा घेर के बैठी थी वह
समझती नहीं, कितने उबाऊ थे उसके गीत
फड़फड़ाती थी अब भी
पर उड़ा देता, तो लोग क्या कहते?
 
अब गाती है तो चीखती सी लगती है
कैसी थकी सी, मनहूस सी दिखती है
खोल तो दिया पिंजड़ा
फड़फड़ाती क्यों नहीं? जाती क्यों नहीं?
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Friday, August 16, 2013

नन्हीं बेटी केलिए

क़लम

मेरी क़लम जी लाल हैं
करती वह कमाल हैं

जैसे-जैसे हाथ कहे
सुन्दर वह लिखती रहें

पर भूखी जब हो जातीं
चलती नहीं हैं, अड़ जातीं

स्याही पीतीं पेटू राम
तब जाकर करती हैं काम


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यह है मेरी प्यारी बिल्ली,
चूहा खाने पहुँची दिल्ली,
छिप चूहे ने जब की टिल्ली,
तब बिल्ली की उड़ गई खिल्ली।

उसने खानी चाही मछली,
कलकत्ते की सैर को निकली,
बड़ी-सी मछली मुँह में भर ली,
चिकनी थी वह फट से फिसली।

बम्बई जाकर चिड़िया धर ली,
मार के चोंचें, वह भी उड़ ली,
बोली दूध है घर में, पगली,
फिर क्यों मेरी जान को मचली?

वापस घर को आई लल्ली,
दूध पिया, तब हुई तसल्ली,
कलकत्ता, बम्बई वह भूली
और कभी ना जाती दिल्ली।

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दो पहाड़ों के पीछे से

सूरज चमक रहा है।

पेड़, घास और चिड़ियों का

जीवन दमक रहा है।

कल-कल करती नदी में देखो

झरना बरस रहा है।

बगुला, बतख़, मछलियों के संग

नाविक विचर रहा है।